हरियाणा की राजनीति में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला के निधन के बाद, इनेलो और जननायक जनता पार्टी (जजपा) के बीच राजनीतिक संघर्ष और तेज हो गया है। जजपा अब इनेलो के चुनाव चिन्ह ‘चश्मा’ को छिनवाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रही है।
जजपा का दावा: चुनाव चिन्ह छीनने की कवायद
जननायक जनता पार्टी के नेताओं ने आरोप लगाया है कि इनेलो अब चुनाव आयोग की शर्तों को पूरा नहीं कर पा रही है, जिसके चलते उसे ‘चश्मा’ चुनाव चिन्ह रखने का अधिकार नहीं होना चाहिए। जजपा के प्रवक्ता वीरेंद्र सिंधु के अनुसार, 1998 के लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन के आधार पर लोकदल को हरियाणा की राज्य पार्टी का दर्जा मिला था और ‘चश्मा’ चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया था। हालांकि, 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में इनेलो आयोग के मानकों पर खरा नहीं उतर पाई।
चुनाव आयोग से आरटीआई पर जवाब न मिलने का आरोप
वीरेंद्र सिंधु ने कहा कि उन्होंने चुनाव आयोग से आरटीआई के जरिए जवाब मांगा था, लेकिन संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। उन्होंने आरोप लगाया कि 2024 के लोकसभा चुनाव में इनेलो चुनाव आयोग के नियमों को पूरा करने में असफल रही, फिर भी उसे 2024 के विधानसभा चुनाव में ‘चश्मा’ चिन्ह पर चुनाव लड़ने की अनुमति दी गई। उन्होंने स्पष्ट संकेत दिए कि जजपा अब इस मामले को हाईकोर्ट तक ले जाएगी।
इनेलो का कड़ा पलटवार
दूसरी ओर, इनेलो ने जजपा के इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। इनेलो के मीडिया प्रभारी राकेश सिहाग ने जजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि जो लोग सत्ता के लिए भाजपा के साथ गठबंधन कर चुके हैं, वे अब नियमों की दुहाई दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि इनेलो की राजनीतिक स्थिति मजबूत है और ‘चश्मा’ चुनाव चिन्ह पर कोई खतरा नहीं है।
ओमप्रकाश चौटाला के निधन के बाद सियासी सरगर्मी तेज
गौरतलब है कि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला का 20 दिसंबर 2024 को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया था। वे 89 वर्ष के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनके निधन के बाद इनेलो और जजपा के बीच सियासी टकराव और अधिक बढ़ गया है।
हरियाणा की राजनीति में नया मोड़
इनेलो और जजपा के बीच यह कानूनी जंग हरियाणा की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकती है। यदि जजपा अदालत में अपनी दलीलें साबित करने में सफल होती है, तो इनेलो को नए चुनाव चिन्ह की तलाश करनी पड़ सकती है।
अब देखना होगा कि यह मामला क्या मोड़ लेता है और हाईकोर्ट इस पर क्या फैसला सुनाती है। फिलहाल, हरियाणा की राजनीति में यह मुद्दा चर्चा का केंद्र बना हुआ है।