असल में, दोनों पदों पर एक ही अधिकारी होता है, जो भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) से जुड़ा होता है। लेकिन उसकी जिम्मेदारियाँ और अधिकार उसके कार्यक्षेत्र के हिसाब से बदल जाते हैं। जब यह अधिकारी कानून व्यवस्था और प्रशासनिक कार्य देखता है, तो उसे डीएम (District Magistrate) कहा जाता है। वहीं, जब वह राजस्व, कर वसूली या भूमि से संबंधित मामलों को संभालता है, तो वही अधिकारी कलेक्टर (Collector) कहलाता है।
डीएम कौन होता है?
डीएम यानी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट किसी जिले का सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी होता है। उसकी जिम्मेदारी जिले में शांति और कानून व्यवस्था बनाए रखना, आपात स्थितियों से निपटना और सरकारी नीतियों को सही ढंग से लागू करना होती है। धारा 144 लागू करना, दंगों या प्राकृतिक आपदा की स्थिति में राहत कार्यों की निगरानी करना, भीड़ नियंत्रण करना, और चुनाव प्रक्रिया को सफलतापूर्वक संपन्न कराना डीएम की प्रमुख जिम्मेदारियाँ होती हैं।
कलेक्टर कौन होता है?
कलेक्टर यानी जिला कलेक्टर जिले में राजस्व प्रशासन का प्रमुख अधिकारी होता है। कलेक्टर को कुछ राज्यों में जिला आयुक्त (District Commissioner) भी कहा जाता है। कलेक्टर का काम भूमि से जुड़े सभी मामलों भूमि अधिग्रहण, मुआवजा वितरण, कर और राजस्व की वसूली, स्टाम्प ड्यूटी, खनन और कृषि उपज से जुड़ी गतिविधियाँ को देखना होता है।
दोनों के अधिकार किस कानून से मिलते हैं?
डीएम को उसकी प्रशासनिक शक्तियाँ दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code – CrPC), 1973 से मिलती हैं, जबकि कलेक्टर को अधिकार भूमि राजस्व संहिता (Land Revenue Code), 1959 के अंतर्गत प्राप्त होते हैं।
इस तरह कहा जा सकता है कि डीएम और कलेक्टर दोनों एक ही व्यक्ति होते हैं, लेकिन उनके अधिकार और जिम्मेदारियाँ अलग-अलग कार्यक्षेत्रों में विभाजित रहती हैं। जब वह कानून व्यवस्था संभालता है, तो डीएम होता है, और जब राजस्व या भूमि से जुड़े कार्य करता है, तो कलेक्टर कहलाता है।
