Wheat Farming Tips: गेहूं की बंपर पैदावार चाहते हैं तो फॉलो करें विशेषज्ञों की ये टिप्स, हो जाएगा दोगुना झाड़
Wheat Farming Tips: हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के गेहूं रोग विशेषज्ञ डॉ. ओपी बिश्नोई ने किसानों को गेहूं की फसल में बेहतर उत्पादन और गुणवत्ता के लिए सिंचाई, उर्वरक, और खरपतवार नियंत्रण से संबंधित आवश्यक सुझाव दिए हैं। इन उपायों को अपनाकर किसान अपनी फसल की उपज और गुणवत्ता को बेहतर बना सकते हैं।
गेहूं की सिंचाई के सही समय का महत्व
- पछेती बिजाई वाली फसल: पहली सिंचाई 30 दिन बाद करें।
- अगेती या समय पर बिजाई वाली फसल: सिंचाई 20-25 दिन के अंतराल पर करें।
- पौधों को पर्याप्त नमी मिलने से उनका विकास तेजी से होता है।
उर्वरकों का सही उपयोग
डीएपी और यूरिया का संतुलित उपयोग
- बिजाई के समय:
यदि 50 किलोग्राम यूरिया और डीएपी का उपयोग किया गया हो, तो पहली सिंचाई के साथ 60 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ डालें। - यूरिया न डाला गया हो तो:
पहली सिंचाई के समय 65 किलोग्राम यूरिया, और दूसरी सिंचाई के समय 65 किलोग्राम यूरिया डालें।
सिंचाई के अनुसार यूरिया का उपयोग
सिंचाई का समय | यूरिया की मात्रा (किलो/एकड़) |
---|---|
पहली सिंचाई | 65 |
दूसरी सिंचाई | 65 |
सही उर्वरक प्रबंधन से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और उत्पादन में वृद्धि होती है।
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण
संकरी पत्ती वाले खरपतवार
मंडूसी, कनकी, जंगली जई जैसे खरपतवारों के लिए:
- क्लोडीनोफोप (160 ग्राम) को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
- मैटसलफयूरोन (8 ग्राम):
इसे 200-250 लीटर पानी में घोलकर बिजाई के 30-35 दिन बाद छिड़काव करें। - कारफेन्ट्राजोन-इथाइल (20 ग्राम):
इसे 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार का प्रकार | उपचार विधि | डोज (ग्राम/एकड़) | पानी की मात्रा (लीटर) |
---|---|---|---|
मंडूसी, कनकी, जंगली जई | क्लोडीनोफोप | 160 | 200 |
मालवा, जंगली पालक, हिरणखुरी | कारफेन्ट्राजोन-इथाइल | 20 | 200 |
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार | मैटसलफयूरोन | 8 | 200-250 |
महत्वपूर्ण निर्देश
- खरपतवार नाशक के उपयोग के बाद गेहूं की फसल के स्थान पर ज्वार या मक्के की फसल न लगाएं।
उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ाने के सुझाव
- सिंचाई और उर्वरक का प्रबंधन सही समय पर करें।
- खरपतवार नियंत्रण के लिए वैज्ञानिक और संतुलित तरीकों का उपयोग करें।
- मिट्टी की जांच करवाकर आवश्यक उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें।
इन सभी उपायों का पालन करके किसान न केवल अपनी फसल की गुणवत्ता को बढ़ा सकते हैं, बल्कि बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।