करवा चौथ पर अनोखी याचिका: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में उठाया गया मुद्दा, अदालत ने लगाया जुर्माना



Punjab Haryana Highcourt: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में दायर एक जनहित याचिका में करवा चौथ को सभी महिलाओं के लिए अनिवार्य त्योहार बनाने की मांग की गई। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह त्योहार केवल विवाहित महिलाओं तक सीमित नहीं होना चाहिए बल्कि विधवा, तलाकशुदा, अलग रह रही महिलाओं और लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को भी इसमें शामिल होने का अधिकार मिलना चाहिए।

करवा चौथ: एक पवित्र परंपरा

करवा चौथ भारत के सबसे पवित्र और प्रिय त्योहारों में से एक है, जहां महिलाएं सूर्योदय से चांद निकलने तक उपवास रखती हैं और अपने पति की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं।

त्योहार की सबसे खास बात है चांद की झलक के साथ उपवास तोड़ना। महिलाएं छलनी के माध्यम से चांद को देखती हैं और उसके बाद अपना व्रत समाप्त करती हैं। यह दृश्य कविता और बॉलीवुड के कई खास पलों को प्रेरित कर चुका है।

याचिकाकर्ता का तर्क: समावेशिता का अभाव

हालांकि, याचिकाकर्ता के अनुसार, यह परंपरा पर्याप्त समावेशी नहीं है। उनका तर्क था कि विधवा, तलाकशुदा, अलग रह रही महिलाएं और लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाएं इस परंपरा से अक्सर वंचित रह जाती हैं। उन्होंने मांग की कि कानून में संशोधन कर इसे सभी महिलाओं के लिए अनिवार्य बनाया जाए। साथ ही, किसी भी समूह द्वारा इन महिलाओं को त्योहार में भाग लेने से रोकने पर दंडात्मक कार्रवाई की जाए।

अदालत की सुनवाई: याचिका पर क्या कहा गया?

मुख्य न्यायाधीश शील नागु और न्यायमूर्ति सुमीत गोयल की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता "सभी वर्गों और श्रेणियों की महिलाओं के लिए करवा चौथ को अनिवार्य त्योहार घोषित करने" की मांग कर रहे हैं।

याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि करवा चौथ को "महिलाओं के सौभाग्य का त्योहार", "मां गौरा उत्सव" या "मां पार्वती उत्सव" घोषित किया जाए। उन्होंने केंद्र सरकार और हरियाणा सरकार को निर्देश देने की मांग की कि वे इस संबंध में कानून में उचित संशोधन करें और सुनिश्चित करें कि सभी महिलाएं इस त्योहार में भाग लें।

याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि किसी भी समूह द्वारा महिलाओं को इस त्योहार में भाग लेने से रोकना "अपराध" घोषित किया जाना चाहिए और ऐसा करने वालों पर कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।

अदालत का निर्णय: याचिका खारिज

खंडपीठ ने कहा, "याचिकाकर्ता द्वारा एक सामाजिक मुद्दा उठाया गया है, जिसमें उनका मानना है कि विधवाओं और कुछ वर्गों की महिलाओं को करवा चौथ के रीति-रिवाजों का पालन करने से वंचित रखा जाता है। इसलिए, इसे सभी महिलाओं के लिए अनिवार्य बनाने और इसका पालन न करने पर दंड लगाने की मांग की गई है।"

हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह के मामले "विधानमंडल के विशेष अधिकार क्षेत्र" में आते हैं और अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

अंत में, याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी। अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर 1,000 रुपये का जुर्माना लगाया, जिसे पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ के गरीब मरीज कल्याण कोष में जमा कराने का निर्देश दिया।

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