दादुपुर-नलवी सिंचाई योजना के लिए अधिग्रहीत भूमि का मुआवजा जारी करने की किसानों की मांग

Dadupur nahar


नया हरियाणा: हरियाणा सरकार से दादुपुर-नलवी सिंचाई योजना के लिए अधिग्रहीत भूमि का लंबित मुआवजा जारी करने की मांग जोर पकड़ रही है। यह मांग पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले के बाद उठी है, जिसमें 2018 की अधिसूचना के तहत भूमि अधिग्रहण रद्द करने वाले सेक्शन 101A को खारिज कर दिया गया।

महत्वपूर्ण घटनाक्रम

  • 2004: दादुपुर-नलवी सिंचाई योजना के लिए भूमि अधिग्रहण शुरू।
  • 2009-2017: नहर चालू; इसमें पानी का प्रवाह होता रहा।
  • 2016: हाईकोर्ट ने मुआवजा ₹1.16 करोड़ प्रति एकड़ तय किया।
  • 2018: हरियाणा सरकार ने अधिग्रहीत भूमि को अधिसूचना से रद्द किया।
  • 2024: हाईकोर्ट ने अधिसूचना रद्द कर नहर को पुनः चालू करने और मुआवजा जारी करने का मार्ग प्रशस्त किया।

मुआवजे में असमानता

2004 में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट के तहत लगभग 1,019 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया था। उस समय भूमि मालिकों को प्रति एकड़ ₹5 लाख से ₹14 लाख तक का मुआवजा दिया गया, जो बाजार मूल्य से काफी कम था। 2016 में हाईकोर्ट ने ₹2,887 प्रति वर्ग मीटर (₹1.16 करोड़ प्रति एकड़) के हिसाब से मुआवजा तय किया, जिसमें अन्य शुल्क भी शामिल थे। लेकिन किसानों को मुआवजा देने के बजाय, सरकार ने 2018 में अधिग्रहीत भूमि को अधिसूचना से हटा दिया।

दादुपुर-नलवी नहर की भूमिका

यमुनानगर के दादुपुर गांव से शुरू होकर अंबाला के नलवी गांव तक जाने वाली यह नहर 2009 से 2017 तक सक्रिय रही। इसे खरीफ सीजन के दौरान सिंचाई का स्रोत और भूजल स्तर को रिचार्ज करने के लिए तैयार किया गया था।

हाईकोर्ट का फैसला: किसानों के लिए राहत

20 दिसंबर 2024 को न्यायमूर्ति जीएस संधावालिया और न्यायमूर्ति हरप्रीत कौर जीवन ने 2018 की अधिसूचना को खारिज कर दिया। यह फैसला नहर को फिर से चालू करने और किसानों को लंबित मुआवजा जारी करने का मार्ग खोलता है।

फैसले में कहा गया, “वर्तमान याचिका स्वीकार की जाती है… 3 अगस्त 2018 की अधिसूचना और 14 सितंबर 2018 की नीति को खारिज किया जाता है।”

किसानों की प्रतिक्रिया

दादुपुर-नलवी संघर्ष समिति के अध्यक्ष कश्मीर सिंह ढिल्लों ने फैसले का स्वागत करते हुए इसे किसानों के लिए एक बड़ी जीत बताया। उन्होंने कहा, “सरकार को जल्द से जल्द मुआवजा राशि जारी करनी चाहिए। अधिग्रहण के समय भूमि का बाजार मूल्य ₹40-50 लाख प्रति एकड़ था, लेकिन हमें केवल ₹5-14 लाख ही मिले।”

किसान अर्जुन सुधैल ने इस बात को रेखांकित किया कि यह नहर सिर्फ 10 साल तक चलने के बाद बंद कर दी गई थी। उन्होंने कहा, “यह देश की पहली नहर थी, जिसे मात्र एक दशक में बंद कर दिया गया। सरकार को समय पर मुआवजा सुनिश्चित करना चाहिए।”

नहर पुनः चालू और मुआवजे पर ध्यान केंद्रित

हाईकोर्ट के फैसले ने सरकार को न केवल नहर संचालन फिर से शुरू करने बल्कि किसानों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए भी बाध्य किया है। अब किसानों को उम्मीद है कि उन्हें उनका वाजिब हक मिलेगा और यह परियोजना फिर से शुरू होगी।

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