ओम प्रकाश चौटाला: 15 महीने में तीन बार सीएम बने, ताऊ देवीलाल ने घर से निकाला, जानिए उनके किस्से?
देवीलाल की पांच संतानों में सबसे बड़े ओमप्रकाश चौटाला का जन्म 1 जनवरी 1935 को हुआ। शुरुआती शिक्षा के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। इसका जिक्र करते हुए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, "उस जमाने में बेटों का बाप से ज्यादा पढ़ा होना अच्छा नहीं माना जाता था, इसलिए मैंने जल्द ही पढ़ाई छोड़ दी।"
हालांकि, 2013 में जब चौटाला तिहाड़ जेल में शिक्षक भर्ती घोटाले के आरोप में बंद थे, तब उन्होंने 82 साल की उम्र में पहले दसवीं और फिर बारहवीं की परीक्षा पास की।
वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता ने एक लेख में उनकी स्कूली दिनों की एक दिलचस्प घटना का जिक्र किया। वह लिखते हैं, "स्कूल में लंच की घंटी बजते ही ओमप्रकाश सबसे पहले हॉस्टल की मेस की ओर दौड़ते। एक दिन टीचर ने उन्हें रोक लिया, तो उन्होंने कहा—‘भूख बर्दाश्त नहीं होती।’"
चौटाला की चुनावी राजनीति की शुरुआत 1968 में हुई। उन्होंने पहली बार अपने पिता देवीलाल की परंपरागत सीट ऐलनाबाद से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें राव बीरेंद्र सिंह की विशाल हरियाणा पार्टी के उम्मीदवार लालचंद खोड़ से हार का सामना करना पड़ा।
हालांकि, हार के बाद भी वह पीछे नहीं हटे। उन्होंने चुनाव में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में चुनौती दी। करीब सालभर चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने लालचंद की सदस्यता रद्द कर दी। 1970 में उपचुनाव हुए, जिसमें चौटाला ने जनता दल के टिकट पर जीत हासिल की और विधायक बने।
चौटाला पर घड़ियों की तस्करी आरोप और घर निकाला
1978 में ओमप्रकाश चौटाला घड़ियों की तस्करी के आरोप में फंस गए थे, जिसके कारण उनके पिता देवीलाल ने घर से निकाल दिया। उस समय देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री थे।
चौटाला साउथ-ईस्ट एशिया के एक सम्मेलन में भाग लेने बैंकॉक गए थे और 22 अक्टूबर को भारत लौटे। दिल्ली एयरपोर्ट पर कस्टम विभाग ने उनके बैग की तलाशी ली, तो वहां से करीब 4 दर्जन घड़ियां और 2 दर्जन महंगे पेन बरामद हुए। इसके बाद खबर फैल गई कि देवीलाल के बेटे ओमप्रकाश चौटाला तस्करी में शामिल हैं।
देवीलाल उस समय चंडीगढ़ के PGI अस्पताल में इलाज करा रहे थे। जब उन्हें इस घटना की जानकारी मिली, तो उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर साफ शब्दों में कह दिया, "ओमप्रकाश के लिए मेरे घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं।"
हालांकि, हरियाणा के पूर्व वित्त मंत्री संपत सिंह बताते हैं, "चौटाला घड़ियों की तस्करी में शामिल नहीं थे। मुख्यमंत्री का बेटा होने के कारण उन्हें विदेश यात्रा के दौरान उपहार स्वरूप घड़ियां मिली थीं। जांच के बाद वह निर्दोष पाए गए। इसके बाद देवीलाल ने बेटे को माफ कर दिया।"
ओम प्रकाश का पहली बार सीएम नाम
1985 में जब लोगोंवाल समझौता हुआ, जिसमें चंडीगढ़ और रावी-व्यास के जल बंटवारे से जुड़ा विवाद था, तो हरियाणा में इसे लेकर काफी आक्रोश था। देवीलाल के साथ लोकदल के 18 विधायकों ने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया और 'न्याय युद्ध' छेड़ा। ओमप्रकाश चौटाला भी इस आंदोलन का सक्रिय हिस्सा बने। इस दौरान उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लिया और राजनीति में अपनी पहचान बनाई।
1987 के विधानसभा चुनाव में लोकदल को 90 सीटों में से 60 पर जीत मिली, और देवीलाल दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। दो साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में जनता दल की सरकार बनी और वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने, जबकि देवीलाल को डिप्टी प्रधानमंत्री बनाया गया। अब देवीलाल के सामने सबसे बड़ा सवाल था कि हरियाणा की कमान किसे सौंपी जाए।
प्रोफेसर संपत सिंह एक किस्से का जिक्र करते हुए बताते हैं, "दिल्ली के हरियाणा भवन में देवीलाल काफी परेशान दिख रहे थे। देर रात तक उन्हें नींद नहीं आ रही थी। दरअसल, वह दिल्ली की राजनीति में जाना चाहते थे, लेकिन उनकी चिंता ये थी कि उनके बाद हरियाणा की कमान कौन संभालेगा। उन्हें डर था कि कहीं पार्टी और परिवार बिखर न जाए। इसी बीच मैंने उनका दरवाजा खटखटाया। उन्होंने कहा- आओ संपत, नींद नहीं आ रही।"
"मैंने पूछा कि क्या हुआ? देवीलाल ने कहा- 'मैं दोराहे पर खड़ा हूं, उप प्रधानमंत्री बनूं या मुख्यमंत्री बना रहूं? समझ नहीं आ रहा।' मैंने कहा- 'इसमें सोचने वाली क्या बात है, आपको इतनी बड़ी जिम्मेदारी मिल रही है, आप उप प्रधानमंत्री बनिए।' तब देवीलाल ने पूछा- 'यहां किसे कमान सौंपूं?' मैंने कहा- 'आप जो फैसला करेंगे, वह सब मानेंगे।' तब देवीलाल ने कहा- 'ओम कैसा रहेगा?' मैंने कहा- 'ठीक रहेगा जी।' इसके बाद देवीलाल ने घंटी बजाई और PA को बुलाकर कहा- 'वीपी सिंह को फोन लगाओ।'"
"रात के करीब 11 बजे थे, जब देवीलाल ने वीपी सिंह से कहा- 'मैं भी आपके साथ डिप्टी प्रधानमंत्री की शपथ लूंगा' और फोन काट दिया। अगले दिन दिल्ली में लोकदल के विधायकों की बैठक हुई, जहां देवीलाल ने कहा कि ओम मेरी जगह लेगा और हरियाणा का मुख्यमंत्री बनेगा।"
अपना पहला चुनाव हारे ओम प्रकाश चौटाला
2 दिसंबर 1989 को ओमप्रकाश चौटाला पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने, जबकि वे तब राज्यसभा के सांसद थे। मुख्यमंत्री बने रहने के लिए उन्हें 6 महीने के भीतर विधायक बनना जरूरी था। देवीलाल ने उन्हें अपनी पारंपरिक सीट महम से चुनाव लड़वाया, लेकिन इस पर खाप पंचायत ने विरोध किया। 36 बिरादरी की खाप ने निर्णय लिया कि देवीलाल के भरोसेमंद और हमेशा उनके चुनाव प्रभारी रहे आनंद सिंह दांगी को चुनाव में उतारा जाए, लेकिन देवीलाल इसके लिए तैयार नहीं हुए। इसके परिणामस्वरूप खाप ने आनंद सिंह दांगी को निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा।
27 फरवरी 1990 को महम में चुनाव हुए, जो हिंसा और बूथ कैप्चरिंग का शिकार हो गए। चूंकि राज्य का मुख्यमंत्री खुद चुनाव लड़ रहा था, मीडिया की नजरें इस चुनाव पर थीं, और यह धांधली की खबरों से सुर्खियों में आ गया। चुनाव आयोग ने आठ बूथों पर दोबारा वोटिंग कराने का आदेश दिया। जब दोबारा वोटिंग हुई, तो फिर से हिंसा भड़क उठी, और चुनाव आयोग ने चुनाव रद्द कर दिए।
लंबे राजनीतिक घटनाक्रम के बाद 27 मई को चुनाव की नई तारीखें तय की गईं। लेकिन वोटिंग से कुछ दिन पहले निर्दलीय उम्मीदवार अमीर सिंह की हत्या हो गई। चौटाला ने दांगी के वोट काटने के लिए अमीर सिंह को डमी कैंडिडेट बनाया था। अमीर सिंह और दांगी एक ही गांव मदीना के थे, और हत्या का आरोप दांगी पर लगा।
जब पुलिस दांगी को गिरफ्तार करने उनके घर पहुंची, तो उनके समर्थक भड़क गए। पुलिस ने भीड़ पर गोलियां चलाईं, जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई। महम कांड का शोर संसद में भी गूंजने लगा। प्रधानमंत्री वीपी सिंह और गठबंधन के दबाव में देवीलाल को झुकना पड़ा, और ओमप्रकाश चौटाला को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। उनकी जगह बनारसी दास गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाया गया।
कुछ दिन बाद चौटाला दड़बा सीट से उपचुनाव जीत गए। बनारसी दास को 51 दिन बाद ही मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया, और चौटाला ने दूसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। लेकिन महम कांड का विवाद अभी भी थमा नहीं था। प्रधानमंत्री वीपी सिंह भी चाहते थे कि जब तक चौटाला पर केस चल रहा है, वह मुख्यमंत्री नहीं बनें। इसके बाद, मजबूरन 5 दिन बाद ही चौटाला को फिर से मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। इस बार उन्होंने मास्टर हुकुम सिंह फोगाट को मुख्यमंत्री बनाया।
15 दिन के लिए तीसरी बार मुख्यमंत्री बने चौटाला
1990 में, मंडल कमीशन और OBC आरक्षण के बाद हरियाणा समेत देशभर में हिंसा के घाव अभी भी ताजे थे। इसी बीच, वीपी सिंह सरकार को बाहर से समर्थन दे रही भाजपा ने राम मंदिर बनाने के लिए रथयात्रा निकालने का निर्णय लिया। लालकृष्ण आडवाणी सोमनाथ मंदिर से रथयात्रा शुरू करके अयोध्या तक जाने वाले थे।
हालांकि, वीपी सिंह सरकार के सहयोगी जैसे मुलायम सिंह यादव और लालू यादव इस यात्रा के विरोध में थे। वीपी सिंह ने आडवाणी से यात्रा रुकवाने की कोशिश की, लेकिन आडवाणी ने उनका आदेश नहीं माना। 23 अक्टूबर की रात 2 बजे बिहार के समस्तीपुर में आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी से नाराज भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया, और 7 नवंबर 1990 को वीपी सिंह की सरकार गिर गई।
सरकार गिरने के बाद जनता दल भी दो टुकड़ों में बंट गया। गुजरात के मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और हरियाणा के देवीलाल चंद्रशेखर के साथ चले गए, जबकि बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव ने वीपी सिंह का साथ दिया। चंद्रशेखर 64 सांसदों के साथ जनता दल से अलग हो गए और समाजवादी जनता पार्टी बनाई। कांग्रेस का विरोध करते हुए जनता दल सत्ता में आया था, लेकिन उसी कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने।
चंद्रशेखर ने देवीलाल को डिप्टी प्रधानमंत्री बनाया, और मार्च 1991 में देवीलाल ने हुकुम सिंह को हटाकर ओमप्रकाश चौटाला को तीसरी बार हरियाणा का मुख्यमंत्री बना दिया।
इस फैसले से राज्य के कई विधायक नाराज हो गए और कुछ ने पार्टी छोड़ दी। नतीजतन, 15 दिनों के भीतर ही सरकार गिर गई और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। 15 महीने के भीतर चौटाला को तीसरी बार मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
ताऊ देवीलाल के कहने पर ओपी चौटाला का नामांकन वापिस
1991 में, राष्ट्रपति शासन लागू होने के दो महीने बाद, मई और जून में हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। इस दौरान देवीलाल ने घिराय, ओमप्रकाश चौटाला ने दड़बा और रणजीत चौटाला ने रोड़ी से पर्चा भरा। लेकिन बाद में देवीलाल ने यह निर्णय लिया कि परिवार से केवल एक सदस्य ही चुनाव लड़ेगा।
पिता की बात मानते हुए, ओमप्रकाश चौटाला, जो मुख्यमंत्री थे, ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा। महम में हुई हिंसा के कारण देवीलाल राजनीतिक दबाव में थे। वह महम का रास्ता काटकर दिल्ली जाया करते थे। देवीलाल ने घिराय हलके से नामांकन भरा और साथ ही रोहतक से सांसद चुनाव के लिए भी आवेदन किया, लेकिन दोनों ही चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके परिणामस्वरूप हरियाणा में कांग्रेस की सरकार आ गई।
इसी दौरान, राजीव गांधी की हत्या हो गई और पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने। नरसिम्हा राव ने हरियाणा में भजनलाल को मुख्यमंत्री बना दिया।
1993 में, कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री चौधरी भजनलाल ने शमशेर सिंह सुरजेवाला को राज्यसभा भेजा, जिससे नरवाना विधानसभा सीट खाली हो गई। इस उपचुनाव में शमशेर सिंह ने अपने बेटे रणदीप सुरजेवाला को नरवाना से मैदान में उतारा। ओमप्रकाश चौटाला ने भी इस सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की, जिससे वह फिर से हरियाणा विधानसभा में लौट आए।
बंसीलाल की सरकार गिरना और चौटाला का फिर से सरकार बनाना
1996 के विधानसभा चुनाव के बाद, बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी ने भाजपा के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई, और बंसीलाल मुख्यमंत्री बने। हालांकि, आपसी मतभेदों के कारण 1999 में भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद कांग्रेस ने बंसीलाल की सरकार को समर्थन दिया, और विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा हुई। कांग्रेस के समर्थन से सरकार बच गई, लेकिन इसके बदले में तय हुआ कि बंसीलाल अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय करेंगे और विधानसभा भंग करके नए चुनाव कराए जाएंगे।
बंसीलाल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने पहुंचे और चुनावी टिकट के लिए उम्मीदवारों की सूची भी उन्हें सौंपी। सूची देखकर सोनिया ने कहा, "मैं इस पर बाद में सोचूंगी।" यह बात बंसीलाल को नहीं भायी, क्योंकि वह इंदिरा गांधी के साथ काम कर चुके थे और बड़े नेता थे। बंसीलाल ने भी यह कहकर बैठक समाप्त की, "मैं भी बाद में सोचूंगा," और लौट आए। इसके बाद कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया और बंसीलाल की सरकार गिर गई।
1996 में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) नाम की नई पार्टी का गठन
इसी बीच, ओमप्रकाश चौटाला के पिता देवीलाल ने 1996 में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) नाम की नई पार्टी बनाई। 1999 में बंसीलाल की सरकार गिरने के बाद, ओमप्रकाश चौटाला सक्रिय हो गए। उन्होंने बंसीलाल की पार्टी के कुछ विधायकों को तोड़कर नई सरकार बनाई और 24 जुलाई 1999 को चौथी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने।
साल 2000 में, हरियाणा में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। इस बार ओमप्रकाश चौटाला ने भाजपा के साथ गठबंधन किया और मुफ्त बिजली और कर्ज माफी का वादा किया। इसके परिणामस्वरूप इनेलो ने अकेले बहुमत हासिल किया और ओमप्रकाश चौटाला पांचवीं बार मुख्यमंत्री बने।
नई पार्टी बनीं और बहुमत की सरकार बनीं
साल 2000 में हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने वाले थे। एक साल पहले विधायकों की जोड़-तोड़ से सत्ता में आए ओमप्रकाश चौटाला के लिए यह चुनाव असली परीक्षा थी। उन्होंने किसानों से वादा किया कि अगर उनकी सरकार सत्ता में आई तो बिजली मुफ्त कर दी जाएगी। साथ ही, जिन किसानों ने बिजली बिल भरने के लिए कर्ज लिया है, उनका कर्ज भी माफ कर दिया जाएगा।
यह वादा काम कर गया। चार साल पहले बनाई गई उनकी पार्टी 'इंडियन नेशनल लोकदल' (इनेलो) ने 47 सीटें जीत लीं। ओमप्रकाश चौटाला पांचवीं बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। सत्ता संभालने के बाद उन्होंने गांव-गांव तक बिजली पहुंचाई, लेकिन नए मीटर लगाने के बाद बिजली के बिल अचानक बढ़ गए।
साल 2002 में बिजली बिल बढ़ने से किसान ठगा महसूस करने लगे। उन्होंने बिजली बिल भरने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि सरकार ने बिजली मुफ्त करने का वादा किया था। इस पर सरकार ने कई गांवों की बिजली काट दी, जिससे किसान भड़क उठे और सड़कों पर उतर आए। विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए, और जींद हाईवे जाम कर दिया गया।
इसी दौरान जींद के कंडेला गांव में प्रदर्शन कर रही किसानों की उग्र भीड़ पर पुलिस ने गोलियां चला दीं, जिसमें 9 किसानों की मौत हो गई। इस घटना, जिसे "कंडेला कांड" कहा गया, ने पूरे हरियाणा को झकझोर दिया।
तीन साल बाद, 2005 के विधानसभा चुनाव में चौटाला की पार्टी महज 9 सीटों पर सिमट गई। खुद चौटाला दो सीटों से चुनाव लड़े, जिनमें से एक पर हार गए। उनके 10 मंत्री भी अपनी सीटें नहीं बचा पाए।
इसके बाद से इनेलो कभी सत्ता में नहीं लौट पाई। 2018 में पार्टी टूट गई, और 2019 के विधानसभा चुनाव में यह केवल एक सीट पर सिमट कर रह गई।
टीचर भर्ती घोटाले में 10 साल की कैद
1999-2000 में हरियाणा के 18 जिलों में टीचर भर्ती घोटाला सामने आया, जिसमें मनमाने तरीके से 3206 जूनियर बेसिक ट्रेनिंग (JBT) टीचरों की भर्ती की गई थी। यह घोटाला उस समय के प्राथमिक शिक्षा निदेशक संजीव कुमार द्वारा उजागर किया गया। उन्होंने इसकी जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसके बाद कोर्ट के आदेश पर 2003 में CBI ने इस मामले की जांच शुरू की। जांच के दौरान घोटाले की कई परतें खुली।
जनवरी 2004 में, CBI ने मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला, उनके विधायक बेटे अजय चौटाला, मुख्यमंत्री के ओएसडी विद्याधर, राजनीतिक सलाहकार शेर सिंह बड़शामी सहित 62 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया।
जनवरी 2013 में, दिल्ली की CBI स्पेशल कोर्ट ने ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला को IPC और प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के तहत 10 साल की सजा सुनाई। चौटाला ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन अदालत ने उनकी सजा को बरकरार रखा।
2018 में केंद्र सरकार की विशेष माफी योजना के तहत ओमप्रकाश चौटाला ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इस योजना के तहत 60 साल या उससे अधिक उम्र के वे कैदी, जिन्होंने आधी सजा काट ली हो, रिहा किए जा सकते थे। चौटाला की उम्र करीब 83 साल थी और उन्होंने आधी से ज्यादा सजा पूरी कर ली थी, इसलिए उन्हें 2 जुलाई 2021 को रिहा कर दिया गया।
20 दिसंबर 2024 को ओपी चौटाला का निध
ओम प्रकाश चौटाला कई बीमारियों से पीड़ित थे। उन्होंन 20 दिसंबर 2024 को गुरुग्राम में अतिंम सांस ली। ओम प्रकाश चौटाला हरियाणा के पांच बार सीएम रहे। लेकिन उनके कई ऐसे फैसले हरियाणा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।