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पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, 16 साल पुराने मामले में अपनी ही जमीन पर पेड़ों की कटाई पर लगाई रोक

Punjab And Haryana Highcourt


चंडीगढ़: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने 16 साल पुराने कानूनी विवाद को सुलझाते हुए फैसला सुनाया है कि भले ही किसी व्यक्ति के पास संरक्षित वन क्षेत्र में भूमि का कानूनी स्वामित्व हो, लेकिन वे पर्यावरण संरक्षण और कानूनों के तहत पेड़ों की कटाई नहीं कर सकते। यह निर्णय पर्यावरण संरक्षण कानूनों, विशेष रूप से भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा 35 और वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा 2 को प्राथमिकता देता है।

मामले का इतिहास

यह विवाद 2008 में शुरू हुआ जब कुछ लोगों ने, जो अपनी भूमि को संरक्षित वन के रूप में चिह्नित मानते थे, अदालत से वन विभाग को पेड़ों, विशेष रूप से यूकेलिप्टस के पेड़ों की कटाई से रोकने के निर्देश देने की मांग की। ट्रायल कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी, और इस निर्णय को पहले अपीलीय अदालत ने भी उसी वर्ष बरकरार रखा। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में दूसरी अपील दायर की।

हाईकोर्ट का निर्णय

जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की डिवीजन बेंच ने निचली अदालतों के फैसलों को बरकरार रखते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं को पेड़ों की कटाई की अनुमति नहीं दी जा सकती, भले ही वे भूमि के स्वामी हों। अदालत ने पर्यावरण और पारिस्थितिकी संरक्षण की प्राथमिकता को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया।

कानूनी प्रश्न और निष्कर्ष

अदालत के समक्ष प्रमुख कानूनी प्रश्न यह था:
क्या भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा 35 और वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा 2 के तहत याचिकाकर्ताओं को उनकी भूमि पर लगे पेड़ों की कटाई की अनुमति दी जा सकती है?
अदालत ने स्पष्ट किया कि एक बार जब किसी क्षेत्र को भारतीय वन अधिनियम की धारा 35 के तहत वन घोषित किया जाता है, तो उस पर पेड़ों की कटाई पर रोक लागू हो जाती है। यह प्रतिबंध तब तक बना रहता है जब तक कि 1980 के अधिनियम की धारा 2 के तहत उस क्षेत्र के संरक्षण से छूट देने की नई अधिसूचना जारी नहीं की जाती।

पर्यावरण संरक्षण की प्राथमिकता

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पर्यावरण संरक्षण स्वामित्व के दावों पर भारी पड़ता है। वन संरक्षण से संबंधित कानून अवैध और अनियंत्रित वनों की कटाई को रोकने के लिए बनाए गए हैं, जो पर्यावरणीय क्षरण का कारण बन सकते हैं।

भविष्य के लिए सुझाव

याचिकाकर्ताओं की अपील खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि यदि भविष्य में 1980 के अधिनियम की धारा 2 के तहत कोई अधिसूचना जारी होती है और संरक्षित वन क्षेत्र को छूट दी जाती है, तो याचिकाकर्ता दोबारा अदालत का रुख कर सकते हैं।

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