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पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने बलात्कार और हत्या के मामले में मौत की सजा बरकरार रखी

punjab and haryana high court


चंडीगढ़: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या के दोषी को दी गई मौत की सजा को सही ठहराते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले की पुष्टि की है। न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर और न्यायमूर्ति सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने इस अपराध को "जघन्य" और "अमानवीय, राक्षसी आचरण" का उदाहरण बताते हुए दोषी की अपील खारिज कर दी।

मामले का विवरण

यह मामला 12 नवंबर 2018 को गुरुग्राम के सेक्टर-65 में एक बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या से जुड़ा है। घटना की जानकारी तब मिली जब पुलिस को खाली दुकानों में एक बच्ची का शव मिलने की सूचना दी गई।

गुरुग्राम के फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (POCSO एक्ट) ने पहले दोषी को मौत की सजा सुनाई थी और 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया था। इसके अलावा, पीड़िता के माता-पिता को महिला पीड़ित मुआवजा कोष से 10 लाख रुपये की राशि प्रदान करने का आदेश दिया गया था।

उच्च न्यायालय का फैसला

अदालत ने ट्रायल कोर्ट के फैसले से सहमति जताते हुए कहा कि यह मामला "दुर्लभतम में से दुर्लभतम" श्रेणी में आता है, जहां मृत्युदंड ही उपयुक्त सजा है।
पीठ ने कहा:

  • "यह घटना दोषी के अमानवीय और राक्षसी आचरण का प्रतीक है। बलात्कार के बाद बच्ची की जघन्य हत्या ने यह साबित कर दिया कि मामला मौत की सजा के योग्य है।"
  • अदालत ने दोषी द्वारा सजा कम करने की अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इस अपराध की गंभीरता को देखते हुए यह मुमकिन नहीं है।

साक्ष्य और जांच की पुष्टि

पीठ ने बताया कि:

  • गवाहों की गवाही को जांच अधिकारी द्वारा हासिल किए गए सीसीटीवी फुटेज से पुष्टि मिली।
  • फुटेज में आरोपी को घटना वाले दिन पीड़िता को अपने साथ ले जाते हुए देखा गया।
  • दोषी ने अपने हस्ताक्षरित बयान में अपराध को स्वीकार किया और बलात्कार व हत्या की पूरी जानकारी दी।
  • अपराध में इस्तेमाल किए गए हथियारों की बरामदगी भी दोषी के बयान के आधार पर हुई।

निर्देश और निष्कर्ष

अदालत ने जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि वे एक जल्लाद नियुक्त करें और वैधानिक अपील अवधि के बाद मौत की सजा को लागू करें।
पीठ ने ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों को "अच्छे तरीके से स्थापित" बताया और कहा, "सभी सबूत और साक्ष्य आरोपी के खिलाफ आरोपों को पूरी तरह साबित करते हैं।"

निष्कर्ष

यह फैसला उच्च न्यायालय द्वारा न्यायिक प्रणाली में न्याय की सख्ती और पीड़ित परिवार के लिए संवेदनशीलता को दिखाता है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि इस प्रकार के जघन्य अपराधों में मौत की सजा उपयुक्त और न्यायोचित है।

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