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अपने कार्यकर्ताओं के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते थे ओम प्रकाश चौटाला, जानें हार-जीत के नायक की कहानी

OP Chautala


हरियाणा और देश की राजनीति में एक बड़ा नाम, ओम प्रकाश चौटाला का शुक्रवार को 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। चौटाला का नाम प्रदेश की राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ गया है। किसान राजनीति के दम पर उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी तक का सफर तय किया।

हरियाणा की राजनीति के एक प्रभावशाली चेहरा, ओमप्रकाश चौटाला, अपनी उम्र के 80 पार करने के बाद भी अपनी पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और परिवार को एकजुट रखने के लिए प्रयासरत रहे। हालांकि, वह परिवार में आई दरार को पाटने में सफल नहीं हो सके। उनके पोते दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) बनाकर नई राह चुन ली।

परिवार में विभाजन और चौटाला की सोच

चौटाला ने परिवार के बिखराव के बावजूद, इसे जोड़ने के लिए कोई पहल नहीं की। उनका मानना था कि जो व्यक्ति सत्ता के लिए परिवार को छोड़ सकता है, वह भविष्य में भी ऐसा कर सकता है। यही वजह थी कि उन्होंने परिवार की एकजुटता को लेकर ज्यादा प्रयास नहीं किए।

हार-जीत का नायक: एक अडिग नेता

चुनाव में हार और जीत का असर चौटाला पर कभी नहीं दिखा। जेल जाने के बाद भी वह हताश नहीं हुए और जनता व मंच पर हमेशा आत्मविश्वास से भरे नजर आए। उनके भाषणों में उनका जोश बरकरार रहता था। चुनाव प्रचार के दौरान वह अक्सर कहते थे, "अगर कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाना अपराध है, तो मैं यह अपराध बार-बार करूंगा।"

कार्यकर्ताओं के प्रति वफादारी

ओमप्रकाश चौटाला की पहचान एक ऐसे नेता के रूप में रही, जिन्होंने अपने कार्यकर्ताओं के लिए हर संभव कोशिश की। अगर उन्होंने किसी कार्यकर्ता के काम को करने का वादा किया, तो उसे पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

इस बात का एक दिलचस्प किस्सा है। एक बार उनके करीबी कार्यकर्ता ने अपने बेटे की विश्वविद्यालय में नौकरी के लिए सिफारिश करने की गुजारिश की। चौटाला ने तुरंत विश्वविद्यालय के कुलपति (वीसी) को फोन लगाया। वीसी ने जवाब दिया कि नियुक्ति के लिए मानदंड (नॉर्म्स) पूरे नहीं हैं। चौटाला ने तपाक से कहा, "जब तुझे वीसी बनाया था, तब तेरे भी नॉर्म्स पूरे नहीं थे।"

स्पष्ट और बेबाक नेता

ओमप्रकाश चौटाला एक ऐसे नेता रहे, जिन्होंने कभी यह नहीं कहा कि उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। उनकी भाषा में स्पष्टता और विचारों में दृढ़ता थी।

उनकी सादगी, अपने कार्यकर्ताओं के प्रति प्रतिबद्धता और बेबाकी ने उन्हें हरियाणा की राजनीति में एक विशेष स्थान दिलाया। उम्र के आखिरी पड़ाव तक भी उन्होंने अपने सिद्धांतों और विचारों से समझौता नहीं किया।

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