हरियाणा के करनाल जिले में 44 साल बाद पति-पत्नी का तलाक: जानें पूरी कहानी
करनाल: हरियाणा के करनाल जिले में एक अनोखा मामला सामने आया है जिसमें शादी के 44 साल बाद पति-पत्नी का तलाक हुआ। 18 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद दोनों ने अपने रिश्ते को खत्म करने का फैसला लिया। इस दौरान पति ने पत्नी को गुजारा भत्ता देने के लिए अपनी खेती की जमीन और फसल तक बेच दी। आइए जानते हैं इस पूरे मामले की विस्तार से जानकारी।
44 साल पुराना रिश्ता आखिरकार खत्म हुआ
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, यह शादी अगस्त 1980 में हुई थी। इतने सालों तक साथ रहने के बाद पति-पत्नी का रिश्ता बिगड़ गया। पति की उम्र इस समय 70 साल है जबकि पत्नी की उम्र 73 साल है। इस दौरान दोनों के तीन बच्चे हुए- दो बेटियां और एक बेटा।
2006 से पति-पत्नी अलग रह रहे थे
रिश्ते में तनाव के चलते यह दंपत्ति 8 मई 2006 से अलग रह रहे थे। उस समय उन्होंने अलग-अलग रहने का फैसला किया था। हालांकि, तलाक की प्रक्रिया इतनी आसान नहीं थी।
2013 में फैमिली कोर्ट ने अर्जी की थी खारिज
2006 में अलग होने के बाद पति ने 2013 में करनाल की फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दायर की थी। हालांकि, कोर्ट ने इस अर्जी को खारिज कर दिया।
हाई कोर्ट में 11 साल लंबित रहा मामला
फैमिली कोर्ट में अर्जी खारिज होने के बाद पति ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में अपील की। इस केस को वहां 11 साल तक सुना गया। आखिरकार, कोर्ट ने इस मामले को अपने मध्यस्थता केंद्र में भेज दिया।
मध्यस्थता केंद्र ने किया मामला सुलझाने में मदद
हाई कोर्ट के मध्यस्थता केंद्र ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और पति-पत्नी के बीच सहमति बनाने का प्रयास किया। मध्यस्थता के दौरान दोनों पक्षों के बीच तलाक की शर्तों पर सहमति बनी।
पति ने 3 करोड़ से ज्यादा का गुजारा भत्ता दिया
मध्यस्थता के दौरान यह तय हुआ कि पति पत्नी को गुजारा भत्ता के रूप में 3.07 करोड़ रुपये का भुगतान करेगा।
- 2 करोड़ रुपये: पति ने अपनी जमीन बेचकर यह रकम जुटाई और पत्नी को डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से भुगतान किया।
- 50 लाख रुपये: यह रकम पति ने नकद में दी।
- 40 लाख के गहने: पति ने सोने और चांदी के गहने भी पत्नी को दिए।
खेती की जमीन और फसल बेचकर जुटाई रकम
पति ने गुजारा भत्ता के लिए अपनी खेती की जमीन तक बेच दी। इसके अलावा, उसने फसल बेचकर भी बड़ी रकम जुटाई। यह एक बड़ा और भावुक फैसला था, क्योंकि उम्र के इस पड़ाव में जमीन बेचना किसी भी किसान के लिए आसान नहीं होता।
बच्चों ने भी निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
इस मामले में पति-पत्नी के बच्चों ने भी मध्यस्थता प्रक्रिया के दौरान अहम भूमिका निभाई। तीनों बच्चों- दो बेटियों और एक बेटे ने अपने माता-पिता के बीच सुलह कराने में मदद की।
कानूनी प्रक्रिया की लंबी जटिलता
इस केस की कहानी कानूनी लड़ाई की जटिलताओं को भी उजागर करती है।
- 2006: पति-पत्नी ने अलग-अलग रहना शुरू किया।
- 2013: फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी खारिज हुई।
- 2024: हाई कोर्ट के मध्यस्थता केंद्र में मामला सुलझा।
18 साल के लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार दोनों ने अपनी-अपनी जिंदगी के नए सफर की शुरुआत की।
समाज के लिए एक सीख
यह मामला उन दंपत्तियों के लिए एक सीख है जो शादी में चल रहे तनावों को समय रहते नहीं सुलझाते। इसके अलावा, यह भी दिखाता है कि अदालत और मध्यस्थता प्रक्रिया में समाधान पाने में कितना समय लग सकता है।
भावनात्मक और आर्थिक असर
- पति का त्याग: जमीन और फसल बेचकर रकम जुटाना पति के लिए बहुत भावनात्मक फैसला था।
- पत्नी का अधिकार: पत्नी को गुजारा भत्ता मिलना कानूनी न्याय को दर्शाता है।
हरियाणा के करनाल जिले के इस मामले ने दिखाया कि कानून और मध्यस्थता के माध्यम से जटिल पारिवारिक विवादों को भी सुलझाया जा सकता है। शादी के 44 साल बाद तलाक होना और 3 करोड़ रुपये से ज्यादा का गुजारा भत्ता दिया जाना एक दुर्लभ घटना है। पति का त्याग और पत्नी के अधिकार को सम्मान मिलने की यह कहानी कई लोगों के लिए प्रेरणादायक है।