अंबाला: पंजाब और हरियाणा के किसान, केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ आंदोलन तेज करते हुए, आज फिर दिल्ली कूच की तैयारी में हैं। शंभू बॉर्डर पर बड़ी संख्या में किसान धरने पर बैठे हैं और दिल्ली की ओर बढ़ने की योजना बना रहे हैं। दूसरी ओर, हरियाणा पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए व्यापक सुरक्षा इंतजाम किए हैं।
किसानों का यह विरोध प्रदर्शन सरकार के साथ कई दौर की असफल वार्ताओं और उनकी मांगों को लेकर हो रहे गतिरोध का परिणाम है। आइए, जानते हैं इस पूरे घटनाक्रम का विस्तार से ब्यौरा।
किसानों का मकसद और रणनीति
क्यों कर रहे हैं किसान दिल्ली कूच?
किसानों का यह मार्च संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) और किसान मजदूर मोर्चा के बैनर तले आयोजित किया गया है। उनके मुख्य मुद्दे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी, कृषि कानूनों की पूर्ण वापसी, और किसानों के लिए बेहतर सुविधाएं हैं।
किसानों का कहना है कि अगर केंद्र सरकार उनकी मांगों पर सहमति नहीं बनाती, तो वे दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना देंगे और संसद का घेराव करेंगे।
केंद्र सरकार के साथ किसानों की बैठक
बैठक से क्या निकलेगा परिणाम?
किसानों ने पहले घोषणा की थी कि दिल्ली कूच से पहले वे केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात करेंगे। यह बैठक आंदोलन के अगले कदम की दिशा तय करेगी। किसान नेताओं ने स्पष्ट किया है कि अगर सहमति नहीं बनती, तो 101 किसानों का जत्था पैदल दिल्ली के लिए रवाना होगा।
हरियाणा पुलिस का सुरक्षा चक्र
सख्ती का माहौल
किसानों के दिल्ली कूच के ऐलान के बाद हरियाणा पुलिस ने बॉर्डर पर कड़ी सुरक्षा के इंतजाम किए हैं। शंभू बॉर्डर, अंबाला, जींद, खनौरी, और डबवाली जैसे प्रमुख स्थानों पर भारी पुलिस बल तैनात किया गया है।
बॉर्डर पर थ्री लेयर सिक्योरिटी
- सड़कों पर कीलें और बैरिकेड्स: पुलिस ने सड़क पर कीलें ठोंकी हैं ताकि वाहन या पैदल किसान आसानी से आगे न बढ़ सकें। इसके बाद कंक्रीट की दीवारें खड़ी की गई हैं।
- वाटर कैनन और दंगा नियंत्रण वाहन: पुलिस ने आंसू गैस के गोले, वाटर कैनन और दंगा नियंत्रण वाहनों को तैयार रखा है।
- बढ़ी हुई पुलिस बल की तैनाती: पूरे बॉर्डर क्षेत्र में तिहरी सुरक्षा व्यवस्था की गई है।
इंटरनेट सेवाओं पर रोक
हरियाणा सरकार ने एहतियात के तौर पर 9 दिसंबर तक अंबाला सहित कई जिलों में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी हैं। प्रशासन ने यह कदम किसी भी संभावित अफवाह या गलत सूचना के प्रसार को रोकने के लिए उठाया है।
किसान नेता सरवन सिंह पंधेर का बयान
किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने मीडिया से बातचीत में कहा कि आज किसानों के विरोध प्रदर्शन को 300 दिन पूरे हो चुके हैं। उन्होंने दिल्ली कूच का आह्वान करते हुए कहा कि यह मार्च पूरी तरह शांतिपूर्ण रहेगा।
पंधेर ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि किसानों को अब तक बातचीत का कोई संकेत नहीं मिला है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार किसानों की मांगों को गंभीरता से नहीं ले रही है।
पुलिस और किसानों के बीच टकराव की स्थिति
6 दिसंबर की घटना
6 दिसंबर को किसानों ने दिल्ली की ओर कूच करने की कोशिश की थी। उस दौरान पुलिस और किसानों के बीच झड़प हुई।
- क्या हुआ था?
- पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागकर किसानों को रोकने की कोशिश की।
- झड़प में 16 किसान घायल हो गए, जिनमें से 4 अब भी अस्पताल में भर्ती हैं।
टकराव की आशंका
आज के आंदोलन में भी टकराव की संभावना जताई जा रही है, लेकिन किसान शांतिपूर्ण मार्च की बात कर रहे हैं।
क्या है किसानों की मुख्य मांगें?
किसानों की प्रमुख मांगें निम्नलिखित हैं:
- एमएसपी की गारंटी: किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिले, इसके लिए कानून बनाया जाए।
- कृषि कानूनों की वापसी: सरकार द्वारा पहले लाए गए कृषि कानूनों को पूर्ण रूप से रद्द किया जाए।
- कर्ज माफी: छोटे और मझोले किसानों के कर्ज को माफ किया जाए।
- संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा: किसानों की अन्य मांगों पर सरकार खुले दिल से बातचीत करे।
प्रशासन और किसानों के बीच गतिरोध
प्रशासन की भूमिका
प्रशासन का कहना है कि वह कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए हर संभव कदम उठा रहा है। पुलिस अधिकारियों ने दावा किया है कि किसानों के आंदोलन से आम जनता की सुरक्षा को खतरा हो सकता है, इसलिए रोक लगाना जरूरी है।
किसानों का तर्क
किसान नेताओं का कहना है कि उनका आंदोलन शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक है। उन्होंने प्रशासन से अपील की है कि उन्हें अपनी मांगों के लिए दिल्ली जाने दिया जाए।
सार्वजनिक प्रतिक्रिया
सामाजिक और राजनीतिक समर्थन
- किसान संगठनों का समर्थन: इस आंदोलन को विभिन्न किसान संगठनों और राजनीतिक दलों का समर्थन मिला है।
- जनता की राय: जहां एक ओर जनता किसानों के संघर्ष को समझती है, वहीं दूसरी ओर यातायात और इंटरनेट बंद होने से लोग परेशान भी हैं।
क्या होगा आंदोलन का अगला कदम?
अगर केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच सहमति नहीं बनती, तो यह आंदोलन और बड़ा रूप ले सकता है। किसान संसद का घेराव करने का इरादा रखते हैं, जिससे आने वाले दिनों में राजनीतिक माहौल और गरमा सकता है।
निष्कर्ष
किसानों और सरकार के बीच चल रहा यह गतिरोध एक गंभीर मुद्दा है। जहां एक ओर किसान अपनी मांगों पर अडिग हैं, वहीं सरकार की प्राथमिकता कानून और व्यवस्था बनाए रखना है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे का समाधान कैसे होता है।
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