जब ओम प्रकाश चौटाला 6 महीने में तीन बार मुख्यमंत्री बनें, जानें हरियाणा बनने से लेकर अब तक का पूरा राजनीतिक इतिहास
Haryana Political History: हरियाणा प्रदेश का गठन एक नवंबर 1966 को हुआ। जब से हरियाणा बना तब से यहां की राजनीति बड़ी ही रोचक रही है। हरियाणा के प्रमुख राष्ट्रीय राजनीतिक दलों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, हरियाणा विकास पार्टी, इंडियन नेशनल लोकदल, लोकदल, जनता दल, जनता पार्टी भारतीय जनता पार्टी शामिल हैं।
हरियाणा का पहला मुख्यमंत्री पंडित भगवत दयाल शर्मा था, जिन्होंने 1966 में कांग्रेस के बैनर के तहत सत्ता संभाली थी। उसके बाद, हरियाणा में कई राजनीतिक उतार-चढ़ाव और गठबंधन हुए हैं। वर्तमान में, हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी और जननायक जनता पार्टी का गठबंधन सरकार बना रहा है, जिसका मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर है।
संयुक्त पंजाब के विधायक को हरियाणा की कमान
संयुक्त पंजाब के झज्जर से हरियाणवी कांग्रेसी विधायक पंडित भगवत दयाल शर्मा ने 1 नवंबर 1966 को राज्य की सत्ता की बागडोर संभाली। हरियाणा के गठन के ठीक 3 महीने और 21 दिन बाद राज्य का पहला विधानसभा चुनाव हुआ। इस चुनाव में कांग्रेस के पंडित भगवत दयाल शर्मा ने 48 सीटें लेकर 10 मार्च 1967 को फिर से सरकार बनाई।
सरकार बनने के बाद जश्न मना रहे पंडित जी को महज 13 दिन बाद ही सत्ता गंवानी पड़ी। 24 मार्च 1967 को हरियाणा विधानसभा के अध्यक्ष राव बीरेंद्र सिंह ने मुख्यमंत्री का पद संभाला।
हरियाणवी संस्कृति के पक्षधर राव बीरेंद्र को उनके विरोधियों ने भी चैन की सांस नहीं लेने दी। राव के शासन काल में दलबदल चरम पर था। वहीं, हरियाणा की राजनीति आया-राम गया राम के नाम से मशहूर हो गई। राव बीरेंद्र सिंह को महज 7 महीने 27 दिन में कुर्सी छोड़नी पड़ी।
1967 में राष्ट्रपति शासन लगाया गया
राज्य को ऊंचाइयों पर ले जाने और मुख्यमंत्रियों के राजनीतिक बलिदान के बाद 21 नवंबर 1967 को राष्ट्रपति शासन लागू हुआ। राष्ट्रपति शासन के दौरान 12 मई 1968 को मध्यावधि चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस को बहुमत मिला।
सरकार बनाने को लेकर लंबी जद्दोजहद चली। हाईकमान ने मामले को सुलझाने की जिम्मेदारी गुलजारी लाल नंदा और पंडित भगवत दयाल शर्मा को दी। एक हफ्ते तक चली बैठकों के बाद सभी चौधरी बंसीलाल के नाम पर सहमत हो गए। गुलज़ारी लाल नंदा से निकटता के कारण बंसी लाल की लॉटरी लग गई।
1968 में बंसीलाल को सत्ता मिली
राज्य में छह महीने के राष्ट्रपति शासन के बाद 21 मई 1968 को बंसीलाल ने हरियाणा की सत्ता संभाली। अपने कुशल नेतृत्व में बंसीलाल ने आया-राम गया राम की राजनीति को ख़त्म कर दिया।
साल 1972 में राज्य विधानसभा के आम चुनाव हुए और वह फिर से मुख्यमंत्री बने। अपनी दबंग छवि से चौधरी बंसीलाल ने अफवाहों के बाजार को नियंत्रित किया और केंद्र पर भी मजबूत पकड़ बनाई।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें अपना विश्वासपात्र मानकर केंद्र में बुलाया और रक्षा मंत्रालय की कमान सौंपी। केंद्र से बुलावा आने के बाद भी बंसीलाल ने प्रदेश की राजनीति में अपना दबदबा कायम रखा।
1 दिसम्बर 1975 को उन्होंने राज्य की सत्ता अपने विश्वस्त बनारसी दास गुप्ता को सौंप दी और दिल्ली चले गये। गुप्ता ने बंसीलाल के मार्गदर्शन में काम करना शुरू किया।
लोकनायक जयप्रकाश के नेतृत्व में हुए आन्दोलन और आपातकाल की घोषणा के कारण राज्य में 29 अप्रैल 1977 से 20 जून 1977 तक फिर राष्ट्रपति शासन लागू रहा।
आपातकाल और कांग्रेस विरोध
पूरे भारत में आपातकाल का भारी विरोध हुआ और 1977 में कांग्रेस का सफाया हो गया। केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनने के साथ ही राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया, लेकिन जून में हुए चुनाव में जनता पार्टी की जीत हुई। भारी बहुमत के साथ और देवी लाल 21 जून 1977 को राज्य के मुख्यमंत्री बने।
लगभग दो साल बाद ही देवी लाल के कुछ विधायकों ने सरकार का विरोध करना शुरू कर दिया और 28 जून 1979 को भजन लाल ने देवी लाल से सत्ता छीन ली। जनवरी 1980 में जैसे ही कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव जीता, भजन लाल प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से हाथ मिलाकर अपनी पार्टी सहित कांग्रेस में शामिल हो गये।
भजनलाल जनता पार्टी के मुख्यमंत्री के बजाय कांग्रेस के मुख्यमंत्री बने।
राजनीति में पीएचडी के लिए मशहूर हुए भजनलाल
19 मई 1982 को राज्य में पांचवीं बार चुनाव हुए। पूर्ण बहुमत नहीं होने के बावजूद राज्य के तत्कालीन राज्यपाल जीडी तपासे ने भजन लाल को सबसे बड़े राजनीतिक दल के नेता के रूप में पद की शपथ दिलाई।
राजनीति में पीएचडी के लिए मशहूर भजन लाल ने तय समय में बहुमत साबित कर सभी को चौंका दिया। देवीलाल ने इसका विरोध किया। स्थिति को भांपते हुए कांग्रेस आलाकमान ने 5 जून 1986 को भजन लाल की जगह बंसी लाल को सीएम बना दिया।
बंसी लाल ने माहौल बदलने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए। 17 जून 1987 को हुए विधानसभा चुनाव में लोकदल और उसकी सहयोगी पार्टियों ने 78 सीटों पर कब्जा कर लिया। 20 जून 1987 को देवीलाल ने सीएम पद की शपथ ली।
उस समय देवीलाल ने 'लोकराज-लोकलाज से चलता है' का नारा दिया था। नवंबर 1989 के लोकसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाले देवीलाल 2 दिसंबर 1989 को देश के उपप्रधानमंत्री बने और राज्य की कमान अपने बेटे ओमप्रकाश चौटाला को सौंप दी।
चौटाला 6 महीने में 3 बार सीएम
उस समय ओमप्रकाश चौटाला विधायक नहीं थे और उनके लिए 6 महीने के अंदर विधायक बनना जरूरी था। देवीलाल के महम विधानसभा सीट से इस्तीफा देने के बाद उपचुनाव हुआ और चौटाला ने चुनाव लड़ा। इस चुनाव में हिंसक घटनाएं हुईं और सरकार की छवि खराब होने के कारण महज 5 महीने 22 दिन बाद ही चौटाला को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा।
उस समय उपमुख्यमंत्री बनारसी दास गुप्ता को सीएम बनाया गया था। महज 1 महीने 19 दिन के बाद बनारसी दास को सीएम पद से हटाकर ओमप्रकाश चौटाला दोबारा सीएम बन गए। लेकिन राजनीतिक परिस्थितियों के चलते महज 6 दिन बाद ही उपमुख्यमंत्री मास्टर हुकम सिंह को सीएम बनाना पड़ा। विभिन्न परिस्थितियों के चलते मास्टर हुकुम सिंह को बीच में ही हटाकर चौटाला फिर से सीएम बन गये।
कुछ दिन बाद राज्यपाल ने विधानसभा भंग करने की सिफ़ारिश कर दी। उस समय राज्यपाल धनिक लाल मंडल ने राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। चौटाला केवल 15 दिन ही सीएम रहे। अब तक 6 महीने 12 दिन के कार्यकाल में चौटाला तीन बार सीएम बन चुके थे। उनका सीएम बनना और हटना बार-बार चर्चा में रहा।
बंसीलाल की नई पार्टी और भाजपा से गठबंधन
विपक्ष ने पिछले घटनाक्रम को ओमप्रकाश चौटाला की सत्ता की लालसा और राजनीतिक अपरिपक्वता के तौर पर पेश किया। 10 मई 1991 को हुए चुनाव में कांग्रेस बहुमत से जीती और भजनलाल फिर से सीएम बने।
भजनलाल ने पांच साल तक राज्य पर शासन किया। इस बीच, बंसीलाल ने राज्य में हरियाणा विकास पार्टी का गठन किया और 27 अप्रैल 1996 को एचवीपी-भाजपा गठबंधन 44 सीटें जीतकर सत्ता में आये।
बंसीलाल सत्ता में शराबबंदी लाए। इस विवाद में बीजेपी ने एचवीपी से समर्थन वापस ले लिया। उस समय कांग्रेस ने अपना समर्थन देकर बंसीलाल की कुर्सी बचा ली थी।
कुछ दिन बाद कांग्रेस विधायकों ने एचवीपी से समर्थन वापस ले लिया और बंसीलाल को सत्ता से हटा दिया। इसी बीच एचवीपी के कुछ विधायकों ने नई पार्टी बना ली और ओप्रकाश चौटाला का समर्थन कर दिया।
24 जुलाई 1999 को ओमप्रकाश चौटाला फिर सीएम बने। चौटाला ने 6 महीने के भीतर विधानसभा भंग करने की सिफारिश की। 22 फरवरी 2000 को हुए चुनावों में ओप्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाली इनेलो 47 सीटें जीतकर सत्ता में आई और उसकी सहयोगी भाजपा ने 6 सीटें जीतीं। इस बार चौटाला का कार्यकाल पूरा हो गया।
हुड्डा काल का आरंभ और अंत
3 फरवरी 2005 के चुनाव में कांग्रेस 67 सीटें लेकर सत्ता में आई। इस दौरान सीएम पद को लेकर कांग्रेस में लंबे समय तक खींचतान चली और अंत में सांसद भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को राज्य की सत्ता में लाया गया। 5 मार्च 2005 को भूपेन्द्र सिंह हुड्डा सीएम बने।
अक्टूबर 2009 में कांग्रेस फिर से चुनाव जीती और हुड्डा लगातार दूसरी बार सीएम बने। अक्टूबर 2014 में हुए चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और इस बार बीजेपी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
26 अक्टूबर 2014 को बीजेपी ने सीएम पद के लिए आरएसएस पृष्ठभूमि वाले मनोहर लाल को चुना। मनोहर लाल ने हरियाणा के 10वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
2019 में जब पूरे देश में मोदी लहर पूरे चरम पर थी तो बीजेपी दूसरी बार बहुमत हासिल करने में विफल रही। लेकिन बीजेपी को सरकार बनाने के लिए इंडियन नेशनल लोकदल से होकर नए पार्टी बनाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के पोते दुष्यंत चौटाला का सहारा लेना पड़ा।
दुष्यंत चौटाला ने अपनी नई पार्टी बनाई जिसका नाम जननायक जनता पार्टी है। इस पार्टी ने अपने पहले चुनाव में 10 विधानसभा सीट हासिल की। जिसके बाद गठबंधन सरकार बनाने पर दुष्यंत चौटाला को डिप्टी सीएम का पद मिला।