आज हमारा हरियाणा 57 साल का हो गया है। हरियाणा बनने के पीछे कई कहानियां है। कई नेताओं ने आंदोलन किए। लेकिन क्या आप जानते है हरियाणा बनने की असली वजह क्या थी?
हरियाणा बनने के पीछे की कहानी एक लंबी और जटिल कहानी है। यह कहानी सिंधु घाटी सभ्यता से शुरू होती है, जो इस क्षेत्र में लगभग 4500 साल पहले विकसित हुई थी। बाद में, यह क्षेत्र गुप्त साम्राज्य, मौर्य साम्राज्य, और मुगल साम्राज्य के अधीन रहा।
1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, हरियाणा पंजाब राज्य का एक हिस्सा था। हालांकि, एक नवंबर 1966 में, पंजाब के पुनर्गठन के साथ ही हरियाणा और पंजाब दो अलग-अलग राज्य बन गए।
हरियाणा बनने के पीछे कई कारण थे। इनमें से एक कारण यह था कि पंजाब राज्य में सिख और हिंदू आबादी का अनुपात असंतुलित था। पंजाब की कुल आबादी में सिखों की हिस्सेदारी 56% थी, जबकि हिंदुओं की हिस्सेदारी 36% थी। इस असंतुलन के कारण, पंजाब में धार्मिक और जातीय तनाव बढ़ रहा था।
हरियाणा बनने का दूसरा कारण यह था कि पंजाब राज्य के भीतर, हरियाणा क्षेत्र की अपनी अलग पहचान थी। इस क्षेत्र की अपनी अलग भाषा, संस्कृति, और इतिहास था। हरियाणा के लोग चाहते थे कि उन्हें एक अलग राज्य का दर्जा दिया जाए।
1966 में, भारत सरकार ने पंजाब पुनर्गठन अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम के तहत, पंजाब राज्य को तीन राज्यों में विभाजित किया गया: पंजाब, हरियाणा, और हिमाचल प्रदेश। हरियाणा का गठन पंजाब के पश्चिमी हिस्से से किया गया था।
हरियाणा बनने के बाद, इस राज्य ने तेजी से विकास किया है। आज, हरियाणा एक समृद्ध और विकसित राज्य है। यह एक कृषि प्रधान राज्य है, लेकिन इसमें एक मजबूत औद्योगिक आधार भी है। हरियाणा में शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण प्रगति हुई है।
ताऊ देवीलाल के संघर्ष ने बनाया हरियाणा
हरियाणा को अलग राज्य बनाने के पीछे सबसे बड़ा संघर्ष चौधरी देवीलाल का था। चौधरी देवीलाल एक किसान नेता थे, जिन्होंने हरियाणा के लोगों के लिए एक अलग राज्य के निर्माण का लंबा और कठिन संघर्ष किया।
चौधरी देवीलाल का जन्म 25 सितंबर, 1914 को हरियाणा के सिरसा जिले के तेजा खेड़ा गांव में हुआ था। वह एक किसान परिवार से थे और उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय किसानों के लिए काम करने में बिताया।
चौधरी देवीलाल ने 1947 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और जल्द ही वह पार्टी के एक प्रमुख नेता बन गए। उन्होंने 1952 में हरियाणा विधानसभा के लिए चुनाव जीता और 1966 तक विधानसभा के सदस्य रहे।
1966 में, चौधरी देवीलाल ने हरियाणा को अलग राज्य बनाने के लिए एक आंदोलन शुरू किया। उन्होंने कहा कि पंजाब राज्य में सिख और हिंदू आबादी का अनुपात असंतुलित था और इससे पंजाब में धार्मिक और जातीय तनाव बढ़ रहा था। उन्होंने यह भी कहा कि हरियाणा क्षेत्र की अपनी अलग पहचान थी और उसे एक अलग राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिए।
चौधरी देवीलाल के नेतृत्व में, हरियाणा आंदोलन तेजी से लोकप्रिय हो गया। हजारों लोग आंदोलन में शामिल हो गए और उन्होंने हरियाणा को अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया।
1966 में, भारत सरकार ने पंजाब पुनर्गठन अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम के तहत, पंजाब राज्य को तीन राज्यों में विभाजित किया गया: पंजाब, हरियाणा, और हिमाचल प्रदेश। हरियाणा का गठन पंजाब के पश्चिमी हिस्से से किया गया था।
हरियाणा को अलग राज्य बनाने में चौधरी देवीलाल के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। उन्होंने हरियाणा के लोगों के लिए एक अलग राज्य के निर्माण के लिए लंबा और कठिन संघर्ष किया और अंततः उन्हें सफलता मिली।
हरियाणा को अलग राज्य बनाने के पीछे चौधरी देवीलाल के अलावा अन्य नेताओं का भी योगदान था। इनमें चौधरी चरण सिंह, चौधरी बंसीलाल, और चौधरी प्रताप सिंह चहल शामिल हैं। हालांकि, चौधरी देवीलाल को हरियाणा आंदोलन के सबसे प्रमुख नेता के रूप में माना जाता है।
हरियाणा बनने की कहानी एक सफल कहानी है। यह एक ऐसी कहानी है जो एक अलग राज्य के गठन के लिए लोगों की इच्छाशक्ति और संघर्ष को दर्शाती है।
Comments