Haryana Election 2024 : हरियाणा में 2024 में लोकसभा चुनाव होने है।हरियाणा में कुल 10 लोकसभा सीट है। इन 10 लोकसभा सीट में से एक है कुरुक्षेत्र। यह लोकसभा सीट सबसे अहम सीट में से एक है। इस सीट को राजनीतिक वनवास दिलाने वाली सीट कहा जाता है। क्योंकि इस सीट पर ज्यादा जो लोग चुनाव जीते वो मैदान छोड़कर चले गए।
1971 से पहले यह क्षेत्र कैथल लोकसभा में आता था और इस सीट का नाम भी कैथल था। 1977 के चुनाव से अस्तित्व में आई कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट के तहत अब कुरुक्षेत्र और कैथल जिलों की सभी 4-4 विधानसभा सीटों के अलावा यमुनानगर जिले की रादौर विधानसभा सीट भी आती है।
1971 तक इस लोकसभा का अधिकतर क्षेत्र कैथल लोकसभा सीट में आता था जिससे देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे गुलजारी लाल नंदा दो बार सांसद बने थे। कैथल लोकसभा सीट पर हुए चार चुनावों में कांग्रेस के ही उम्मीदवार जीते जिनमें से 1957 में मूलचंद जैन और 1962 में देवदत्त पुरी सांसद बने जबकि 1967 और 1971 में गुलजारी लाल नंदा चुनाव जीते।
एक अन्य लोकप्रिय नेता इंद्र सिंह श्योकंद ने कैथल लोकसभा से 1962 और 1967 में स्वतंत्र पार्टी से और 1971 कांग्रेस (ओ) में लोकसभा चुनाव लड़े और तीनों बार उपविजेता रहे।
कुरुक्षेत्र लोकसभा से अधिकतर सांसद बनिया और सैनी समाज से बने। उद्योगपति ओमप्रकाश जिंदल भी यहां से एक बार (1996-हविपा) और उनके बेटे नवीन जिंदल दो बार (2004, 2009- कांग्रेस) से सांसद रहे।
कुरुक्षेत्र लोकसभा की एक खास बात यह रही कि यह देश और प्रदेश की राजनीतिक आबोहवा के साथ अपना फैसला बदलता रहा है। मसलन एमरजेंसी के बाद 1977 में यहां से भारतीय लोकदल के रघुबीर सिंह जीते और 1980 में जनता पार्टी (एस) के मनोहर लाल सैनी, लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में बदले हालात में यहां से कांग्रेस के सरदार हरपाल सिंह जीते।
1989 में चौधरी देवीलाल की लोकप्रियता के दिनों में यहां से जनता दल से गुरदयाल सैनी चुनाव जीते तो 1991 में जब देश और हरियाणा में कांग्रेस की सरकार आई तो यहां से सांसद कांग्रेस के ही सरदार तारा सिंह बने।
1996 में राज्य में बंसीलाल के नेतृत्व वाली हविपा-भाजपा की सरकार बनी तो यहां से हविपा की टिकट पर ओमप्रकाश जिंदल सांसद बने। 1998 और 1999 में ओमप्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री बने तब यहां से 1998 में हरियाणा लोकदल और 1999 में इनेलो की टिकट पर कैलाशो सैनी चुनाव जीती।
इसके बाद देश और हरियाणा में हवा कांग्रेसी हुई तो केंद्र और राज्य में कांग्रेस की सरकारों के समानांतर यहां से 2004 और 2009 में कांग्रेस की टिकट पर नवीन जिंदल सांसद बने।
हवा के रुख के साथ चलने के अपने रिकॉर्ड को कायम रखते हुए 2014 और 2019 में यहां से भाजपा के राजकुमार सैनी और नायब सिंह सैनी (क्रमशः) सांसद बने। इन दोनों वर्षों में केंद्र में भाजपा की लहर चली और हरियाणा में 2014 में भाजपा की सरकार बनी तो 2019 में भाजपा-जजपा की।
देखा जाए तो अपने गठन से लेकर निरंतर ही कुरुक्षेत्र लोकसभा से वही सांसद बने जिनकी पार्टी की उस दौरान केंद्र और राज्य में सरकार रही। ये कहना मुश्किल है कि यहां से लोग हवा को भांपते हैं या हवा बनाते हैं। इस अनूठे चुनावी इतिहास के लिए यहां की मिश्रित जनसांख्यिकी कारण हो सकती है क्योंकि यहां किसी एक समाज का दबदबा नहीं है।
कुरुक्षेत्र-थानेसर, शाहाबाद और कैथल के शहरी इलाकों के साथ यहां 7-8 कस्बे हैं और छोटे-बड़े सैकड़ों गांव हैं। कलायत का जाट बहुल ठेठ बांगर का इलाका है तो गुहला-पेहोवा का पंजाबी प्रभाव वाला क्षेत्र भी है।
रादौर का सैनी बहुल हलका है तो शाहाबाद-पुंडरी-कैथल-थानेसर जैसे मिश्रित समाज वाले क्षेत्र भी हैं। एक दिलचस्प बात ये है कि कुरुक्षेत्र लोकसभा में कैथल जिले के वोटों की संख्या कुरुक्षेत्र जिले के वोटों से ज्यादा है जबकि यहां से विजेता (और उम्मीदवार भी) या तो कुरुक्षेत्र जिले से संबंध रखने वाले रहे हैं या फिर बाहरी रहे हैं।
इस लोकसभा में सबसे ज्यादा वोटों वाली 3 सीटें कैथल, कलायत और रादौर हैं यानी सभी कुरुक्षेत्र जिले से बाहर के विधानसभा क्षेत्र।
इस सीट पर एक चलन यह भी दिखता है कि यहां के सांसद एक वक्त के बाद यहां से चुनाव लड़ना बंद कर देते हैं हालांकि वे राजनीतिक जीवन में सक्रिय रहते हैं। कैलाशो सैनी दो बार सांसद बनने के बाद यहां से चुनाव लड़ना छोड़ गई तो नवीन जिंदल भी दो बार सांसद रहने के बाद तीसरा चुनाव हार गए और फिर यहां हुए 2019 के चुनाव में नहीं लड़े।
2014 में सांसद बने राजकुमार सैनी ने भी राजनीति में सक्रिय रहने के बावजूद यहां से चुनाव नहीं लड़ा। इस सीट पर सबसे ज्यादा चुनाव जिंदल परिवार ने लड़े हैं जिनमें से उन्हें 3 बार जीत मिली और और 2 बार हार मिली।
कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट पर हारने वाले नेताओं में भी कुछ बड़े नाम शामिल हैं। 2004 में अभय चौटाला यहां उपविजेता रहे, 2009 में इनेलो-भाजपा के प्रत्याशी अशोक अरोड़ा भी दूसरे नंबर पर रहे। 1996 में कैलाशो सैनी (समता पार्टी), 1998 में कुलदीप शर्मा (कांग्रेस) और 1999 में ओमप्रकाश जिंदल (कांग्रेस) भी उपविजेता रहे। 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर अंबाला के वरिष्ठ नेता निर्मल सिंह भी यहां चुनाव लड़ने आए और उपविजेता रहे। 2019 में अर्जुन चौटाला तो 5वें नंबर पर रहे।
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